ज़िंदगी का कोई ठिकाना नहीं, इस पल है और उस पल नहीं…रात बीती दिन रह गया…दिन गुज़रा और रात रह गयी…जीवन चंद किस्सों की कहानी है। किसी को नहीं पता कब किसका आख़िरी दिन या रात हो जाए। क्या मालूम किससे आपकी मुलाकात आख़िरी हो जाए… कुछ ठिकाना नहीं। पानी का बुलबुला कब फूट जाए…राम जाने।
आज ये लेख जीवन, उसके महत्व और मृत्यु पर है…और मेरे मन में चल रहे तमाम विचारों को एक जगह इकट्ठा करने की एक कोशिश भी।
जहां से मैं हूं वहां बीते दिनों एक बहुत ही कम उम्र के व्यक्ति का आकस्मिक निधन हो गया…एक और बेहद कम उम्र का शख्स बिना कुछ बोले, बिना कुछ बताए अपने परिवार को छोड़ कर चल बसा…कौन जाने कि जो चंद मिनटों पहले बिल्कुल स्वस्थ लग रहा हो वो अचानक से सबकुछ छोड़ कर मृत्यु को गले लगाकर आगे बढ़ जाएगा…और पीछे छोड़ गया…धन-दौलत, रूपया-पैसा, परिवार, यार-दोस्त… सिर्फ़ छोड़ गया अपनी यादें, बातें और कमाया हुआ अपना व्यवहार…जो उसकी सबसे बड़ी दौलत है।
मरना सबको है एक न एक दिन, बस सब उम्र के हिसाब से सबकुछ हो तो दुख नहीं देता जितना अचानक घटने वाले हादसों से होता है। वैसे एक बार फिर वो बात सही साबित हुई है…जन्म, मृत्यु और विवाह जब लिखे होते हैं तभी होते हैं इन्हें कोई नहीं टाल सकता…वो कहते हैं कि न तिल घटता है और न ही राई बढ़ती है…जब इनकी घड़ी आती है तो ये घट कर ही रहती हैं।
मैं विज्ञान पांडे जी को पर्सनली नहीं जानता था, लेकिन उनके आकस्मिक निधन ने मुझे काफी हैरान कर दिया। शायद इसीलिए 500 किलोमीटर दूर बैठ मैं अपने दिमाग में चल रही बातों को यहां साझा कर रहा हूं। हालांकि, मुझे विज्ञान पांडे जी के बारे में सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप के ज़रिए ही पता चला। फ़ेसबुक के मित्रों और जानने वालों ने उनकी तस्वीरों के ज़रिए बता दिया कि एक साथी और कम हो गया आज।
कई दफ़ा ऐसा होता है कि आप उस व्यक्ति को जानते तो नहीं है मगर उस व्यक्ति के जाने से उत्पन्न हुई पीड़ा को कोसों दूर रह कर भी महसूस करते हैं। विज्ञान पांडे की अंत्येष्टि में भारी संख्या में लोग उन्हें आख़िरी विदाई देने पहुंचे…लोगों ने इस सत्य को फिर दोहराया कि राम नाम सत्य है।
इस ख़बर के बाद मेरे एक मित्र से मैंने पूछा कि विज्ञान पांडे जी को क्या हुआ…मिश्रा जी ने जवाब दिया…साइलेंट अटैक था। सोचिए कोई भी कभी भी लास्ट टाइम बिना बोले – बताए…ऐसे भी चला जाता है।
किसी के जनाज़े में पहुंची भीड़ बता ही देती है कि जाने वाला शख्स क्या था और उसका औरा क्या था…विज्ञान भले ही चले गए हैं पर वो लोगों में, अपने चाहने वालों में और अपने परिवार में सदा के लिए जीवित रहेंगे। ईश्वर आपके परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति दे…अलविदा विज्ञान पांडे
बस अंत में यही कहूंगा कि एक न एक दिन अंत सबका होना है, कोई नहीं है जो कभी भी न मरे…बस इतना ही कहना है कि ख़ूब गुमां कीजिए अपनी दौलत-शौहरत, रुपए-पैसे पर….मगर किसी से गिला मत रखिए… अपने आपको सर्वश्रेष्ठ मत समझिए और कोशिश करिए कि लड़ाई-झगड़ो के बाद भी वापसी कर दोबारा बातचीत शुरू करें…सब भूल कर गले लगें…पहल करें…क्योंकि सुझाव और संवाद हर समस्या का हल ढूंढ ही लेता है।
लड़ाई-झगड़े चलते रहते हैं…और सबकी होती है चाहे, राजा हो या साधारण व्यक्ति… सबके जीवन में ऐसा होता है…यहां हमें इस बात को भी समझना होगा कि राजा भी बुरे दौर व ख़राब किसम्मत की मार खा सकता है…उसे नहीं पता होता कि कब दुश्मन उसके परिवार पर काल बनके हमला कर देगा…दो लाइन्स पढ़ीं थीं कहीं…जो इसे बखूबी चरितार्थ करती हैं।
*समय की पराकाष्ठा जब अपने चरम पर होती है तो सुल्तान की सल्तनत से नवाब भी उठा लिए जाते हैं*
इसीलिए सरल बनिए, सौम्य बनिए और रिश्ते कमाइए… जैसे पांडे जी ने कमाए
विज्ञान पांडे जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
अलविदा साथी
पढ़ने के लिए शुक्रिया
उदित…
(Vinay Rawat)