​कोई तो था…

आये जब वो तो लगा जैसे नया कोई था,

आहे तो ऐसे भरी जैसे बाहों में कोई था,

इज़हार तो ऐसे था जैसे इकरार कोई था,

इश्क़ ऐसे जैसे सदियों से कोई था,
आस भी ऐसे लगी जैसे अपना कोई था,

सपने भी ऐसे लगे जैसे साथ कोई था,

भुलाया ऐसे लगा जैसे पराया कोई था,

छुट्टा तेरा साथ तो लगा जैसे सपना कोई था,

हुई शाम तो लगा जैसे सूरज कोई था,

बीत गए साल तो लगा जैसे वक़्त बहुत था..

बीच मजधार में कश्ती थी मेरी तब लगा जैसे किनारा कोई था,

जब हुआ एहसास की हुई है ख़ता मुझसे तब लगा इसके पीछे चेहरा कोई था,

बुझ गया जब इश्क़ का दिया तब लगा जैसे मेरा मेहबूब कोई था।।

                                                              (उदित…)

बेबस जिंदगी….

बेबस जिंदगी….

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ठण्ड बहुत ज़्यादा है और आज तो दफ्तर से लौटते वक़्त जुत्तों के भीतर से घुसती ये हवा, सच में ठण्ड बहुत ज़्यादा है, क्या करें दिल्ली की सर्दी है साहब। वही रोज़ की तरह घर जाते वक़्त बस में फिर एक किरदार से मुलाकात हुई, या यू कहिये की बेबसी का एक और राह चलता उदहारण।
जीवन सबको मिलता है लगभग सभी को इसकी कद्र भी होती है, पर हालात और मजबूरियें आप से सब करवा लेती हैं।
रोज़मर्रा की तरह आज भी बस में एक व्यक्ति अपने किसी सामान को बेचने के नेक इरादे से चढ़ा, सामान हाँथ ही में था…. एटीएम, मेट्रो कार्ड और अन्य कार्डो को रखने का छोटा सा पर्स…..चढ़ते ही बेहतर तरिके से पर्स की ख़ासियत बतायी वो भी अच्छे शब्दों में….
इस ठिठुरन पैदा कर देने वाली ठण्ड में बदन पर सिर्फ एक कमीज जिस पर किसी चिंगारी का निशां, अध् फटी हुई जीन्स और हवाई चपलएं। सभी से उस 10 रुपए की कीमत वाले पर्स को खरीदने की दरख़्वास्त करता रहा जिसे सौदा पते का लगा उसने ले लिया और जिसे नहीं लगा उसने ये कह कर टाल दिया की….साहब एटीएम भी तो होना चाहिए रखने के लिए तो किसी ने धुत्कारते हुए महँगा दे रहा है की दलील दे डाली…..
उंगलियो के बीच दस -दस के नोट फसाये जिंदगी बढ़ती जा रही थी, रोड पर तेज़ी से चलती बस एक एक कर स्टैंडों को पीछे छोड़ती जा रही थी और वो व्यक्ति अपना बचा हुआ सामान बेच कर घर को जाने वाला था, चाहे जैसे ही सही वो सज्जन अपने परिवार को मेहनत और ईमानदारी की दो रोटी ही तो देने की कोशिश कर रहा था। करनी भी चाहिए क्योंकि आपको ही अपने बारे में सोचना होगा वो भी हर मामले में क्योंकि कोई और नहीं आएगा आपकी ख़बर और बिसरी सुध लेने।
साहब यही जीवन है वक़्त का पता नहीं कब किस ओर करवट ले ले, अच्छे या बुरे दिन कब आते हैं किसी को पता नहीं है, जीवन में चाहे जैसे रहे, कैसी भी स्थिति में हो हमेशा अपने व्यवहार और विचार से सरल रहे, मधुर रहे… जीवन में ऊँचा उठते समय लोगों से सद्व्यवहार रखें, क्योंकि यदि कभी आपको नीचे आना पड़ा तो सामना इन्हीं लोगों से होगा। और जब आपकी मुलाकत कभी भविष्य में इन्ही लोगों से होती है तो आपके सदाचार, आचरण और व्यवहार से ही आपको याद किया जाता है।
सदा दूसरों से सीखते रहें, सकरात्मक रहें और ख़ुश रहें क्योंकि अच्छे या बुरे दिनों का पता नहीं……..

शुक्रिया

img-20161125-wa0032उदित…

सफ़र-ए-ज़िन्दगी….

सुबह के बाद शाम है…. दिन के बाद रात है … आशा के बाद निराशा है… निराशा हाथ लगती है तो लगने दो … पर आशा की किरण को ना ढलने दो…. रफ़्तार बहुत तेज़ है वक़्त की … तेज़ ना…

Source: सफ़र-ए-ज़िन्दगी….

सफ़र-ए-ज़िन्दगी….

सुबह के बाद शाम है….
दिन के बाद रात है …
आशा के बाद निराशा है…
निराशा हाथ लगती है तो लगने दो …
पर आशा की किरण को ना ढलने दो….
रफ़्तार बहुत तेज़ है वक़्त की …

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तेज़ ना सही पर धीरे धीरे ही सही खुद को आगे बढ़ने दो….
रुकोगे सफ़र में अगर तो देर हो जाएगी, नहीं बढ़ोगे आगे तो कश्ती मज़धार में रह जाएगी….
लौट के वापस नहीं आता कोई जीवन में…
वक़्त भी गुज़र जाने के बाद ही मुस्कुराता है….
मंज़िल की सीढ़ीएँ ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की तरफ जाती है….SAMSUNG CSC

ये आपकी सोच को बख़ूबी दर्शाती है…

धीरे धीरे चढोगे तो मुकाम पा जाओगे…
तेज़ भागोगे तो जल्दी थक जाओगे…

लक्ष्य कुछ भी जीवन में पाने की ठान लो..
लक्ष्य प्रण से बड़ा नहीं….
हरा वही जो लड़ा नहीं…..
छाले पड़ेंगे पैरों में पर तुम रुकना नहीं….
चाहे जो कहे कहने वाले पर तुम किसी के आगे झुकना नहीं…

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आज नहीं तो कल तुम भी अपनी मंज़िल पर पहुँच जाओगे….
अपने लक्षय को आज नहीं तो कल जरूर पा जाओगे….
बस मरने ना देना अपने सपनों को यूंही….
पूरा कर ना लो इन्हें जबतक ख़ुद को ठाहरने ना देना यूंही..windows-beach-wallpapers-india-wallpaper-panaji-sunset-colors

निराशा हाथ लगती है तो लगने दो …
पर आशा की किरण को ना ढलने दो…
इतने जल्दी ख़ुद को तुम ना थकने दो
बस थकने ना दो…
बस थकने ना दो….

विनय रावत                                                                  (उदित)

चित्र सौजन्य- गूगल

सियासत….

सियासत….

सियासत रंगीन तो है
मगर फूट डाल देती है
रिश्तों में टूट डाल देती है
सियासत चीज़ ही ऐसी है सब में फूट डाल देती हैं….

सत्ता का सुरूर है
पर संबंधों में कम नूर है
सफ़ेद चादर सी तो है
लेकिन काफ़ी मैली है

सच तो ये है की सियासत टूट डाल देती है
रिश्तों में फूट डाल देती है।

लोग इसे कीचड़ तो कहते है
मगर कमाल भी इसी में ढूंढते है
थोड़ी नहीं बहुत गन्दी है
सियासत सच में नंगी है
और सच है इसमें फूट ही फूट होती है।

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सच तो ये है की सियासत टूट डाल देती है
रिश्तों में फूट डाल देती है।

सगे संबंध पीछे टूट जाते है
सियासत में अच्छे अच्छे पीछे छूट जाते है
ये हर बार का मेला है, लगती यहां बोली है
किसी को लाखों संग है तो कोई बिलकुल अकेला,

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सबका अपना अंदाज़ हैं, कोई झूठा तो किसी का झूठ का पुलिन्दा है
कोई जाति पर, कोई धर्म पर मांगता है
या कोई वोट के लिए आरक्षण का राग अलापता है
कोई वादों और नारों में उलझता है
कोई हमारे दर्द को हमारी ताक़त बताता है

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सच तो ये है की सियासत टूट डाल देती है
रिश्तों में फूट डाल देती है।

खून पानी सा बहता है
पैसा हवा में उड़ता है
लोग भी योजनाओं की नाव पर सवार रहते हैं
झूठ ही सही पर झूठ को सबसे बड़ा बताते है
ये विकास के नाम पे सिर्फ भाषण सुनाते है
काम चुनाव में जीत के बाद भूल सा जाते हैं

 
आख़िर कब ये सुधरेगा
बेटा बाप से बाप बेटे से कब तक उलझेगा
रिश्तों की डोर आख़िर कब तक टूटेगी कब कुछ बेहतर होगा
कब हम चुनाव और वोट की क़ीमत समझेगेंreal-story-behind-the-samajwadi-family-of-indian-politics

लेकिन कुछ भी हो ,
सच तो यही है की सियासत टूट दाल देती है
रिश्तों में फूट डाल देती है।
रिश्तों में फूट डाल देती है।

उदित….

चित्र सौजन्य: गूगल बाबा

बस जीवंत ये विचार है….

जीवंत ये विचार हैं
रंगीन सी शाखाओं पे पत्तियों का भार है
उड़ती हुई हवा में धुंध का अंबार है
सख़्त सी सतह पर ये कोमल मृदा है
जीवंत ये विचार है…il_fullxfull-736786575_kxeu

वही राहें वही कतार हैं
सूखी हुई डालों पे पंछी अपार है
मोह का संसार है
कोई छोटा कोई बड़ा हर बार है
रिश्तों की डोर है, पर कहि कहि गांठे हैं
सकंट तो अपार लेकिन
जीवंत ये विचार हैं…img_20150620_170403482

संघर्ष का अंबार है
कभी हार तो कभी हाहाकर है
घंघोरे अंधियारे में, शशि का उपकार है
फ़िक्र कल की है, पर आशाएं अपार है
जीवंत ये विचार है….the-moon

उड़ते नन्हे पंछी अपने पंख पसार
इस अंतहीन आसमां में, जो अनन्तता अपार है
जीते ज़िन्दगी को हर बार हैं….

ना रखो फ़िक्र कल की
क्या हो क्या ना हो उसपार
क्या हो क्या नहीं किसी को इत्तला नहीं
बस जीते जा हर बार तू
सीख ख़ुद से लेते चल, कर्म को सर्वश्रेष्ठ कर
बोझ ना समझ इन्हें, कंधो की ज़िमेदारियां इन्हें समझ
बस लक्ष्य को आँखों में बसा,
नित पथ पे आगे बढ़, परिणाम बेहतर कर
बस जीवंत ये विचार है
जीवंत ये विचार है।

उदित…..

दर्द-ए-ज़िदगी तारीख 19.11.2016, दिन रविवार, गाडी संख्या 19321 इंदौर – राजेन्द्रनगर एक्सप्रेस, इंदौर जंक्शन से ठीक 2 बजे चली तकरीबन सब कुछ सामान्य़ था, लेकिन कल सुबह तड़के तीन बजकर दस मिनट पर कानपुर- झांसी रेल खंड के पुखरायां रेलवे स्टेशन के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई। हादसा इतना भीषण था कि ट्रेन की 14 बोगीयां एक के ऊपर एक चढ़ गयी और बुरी तरह क्षतिग्रसत हो गयी। इस हादसे में GS,GS,A1,B1, B2, B3, BE,S1,S2,S3, S4, S5,S6 कोच को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। हादसा इतना गंभीर था की किसी को किसी सुध तक नहीं थी, अंधेरे में जहां कदम पड़ रहे थे वहां सिर्फ लाशें ही थी। जहां एक तरफ नए दिन का सूरज निकलने जा रहा था, तो वही दूसरी तरफ कई घरों के चिराग़ बुझ चुके थे, कोई अपने बेटे को खोने के गम़ में आंसू बहा रहा था, तो कोई अपनी जीवनसंगनी के चले जाने से सदमे में ख़मोश था, हांथ में पिता की तस्वीर लिए और आंखों में उम्मीद भरे मासूम बेटी पिता की तलाश में जुटी थी, कहीं शादी के कार्ड बिखरे पड़े थे, नोटबंदी के इस माहौल में दो दो हजार के नोट खून में सने पड़े थे, आजमगढ के एक सजन अपने परिवार के साथ बेटी की शादी की ख़रीदारी करके इंद्रौर से वापस घर लौट रहे थे, पर अब किसी का कुछ पता नहीं…ऐसे तमाम किस्से थे जो किसी की भी आंखों में आंसू झलका दे। एक तरफ लाशों के ढेर थे और दूसरी तरफ ट्रेन की टूटी-फूटी बोगियों के बीच उन जिंदगियों के कुछ आखिरी निशान…..इस हादसे में 142 यात्रियों की मौत हो गयी और 260 ज्यादा लोग घायल हुए। किसी ने सोचा भी ना था कि उनके साथ ऐसा हादसा हो जाएगा, कोई अपने रिश्तेदार के यहां शादी में शरीख होने जा रहा था, तो कोई अपने यार दोस्तों के साथ के घूम फिरकर घर लौट रहा था पर ऐसा हो ना सका, कहते हैं मौत हर वक्त़ आपके साथ चलती है, शायद किस्समत को यही मंजूर था.. क्या वाकयी किस्समत को यही मंजूर था या यह ट्रेन हादसा एक लापरवाही और बेतुके आदेश की वज़ह है। करीब 1 बजे ट्रेन ड्राइवर ने अपने अफसरों को ख़तरे के संकेत दिए थे, झांसी से चलने के बाद दो स्टेशन बाद ही चालक ने इंजन मीटर पर अधिक लोड़ की जानकारी अपने अधिकारीयों को दी थी लेकिन ड्राइवर को जैसे-तैसे कानपुर तक ट्रेन ले जाने को कहा गया, ड्राइवर ने पुखरयां के पास ओवरहेड इलेक्टिक केबल में तेज धमाका सुनकर 110किमी प्रतिघंटा की स्पीड से दौड रही ट्रेन के इमरजेंसी ब्रेक लगा दिए….जिसका परिणम एक बडे हादसे के रुप में सामने आया, किसी ने अपने भाई को खोया, किसी के सर से बाप का साया छिन गया, किसी का सुहाग उजड गया तो किसी को दो साल की उम्र में अनाथ कर गया ये हादसा……. हादसे के बाद सेना, एनडीआरएफ और राज्य पुलिस की मदद से रेलवे कर्मचारी खोज और बचाव अभियान लगे रहे हैं, घटना के बाद रेलवे प्रशासन एवं स्थानीय लोग सक्रिय हो गए, पुखरायां के स्थानीय लोगों ने पीड़ितों की हर संभव मदद करने में लगे रहे और मुश्किल के इन छडों में परायों ने साथ दिया… इस दर्दनाक हादसे के बाद खानापूर्ति करने के लिए ऊचस्तारीय जांच के आदेश तो दे दिए गए हैं लेकिन होना कुछ है नहीं, आप सपने बुलट ट्रेन चलाने के देख रहे हैं और ऐसे हादसे बस बढते ही जा रहे है, कही ना कही ये एक बड़ी चुक है। ये 2016 का छठा हादसा था, हर बार की तरह नाम का मुआवज़ा और झूठे वादे तकरीबन हर किसी ने किए, इस हादसे को भी राजनीतिक मोड़ दिया गया…लेकिन जो 146 लोग हमेशा के लिए अलविद़ा कह गए, जिसकी भरपाई ना कोई मुआवज़ा कर सकता है और ना ही कोई वादा। उदित….. विनय रावत

जीवन – एक ऩज़रीया है,         जीवन…. एक अनुभव है, एक सफ़र है और शायद एक ख़ुबसूरत सपना भी जिसे हर व्यक्ति अपने ख़ास अंदाज़ मॆ देखता है, कभी सोते हुए…. तो कभी जागते हुए और एक दिन ये सपना पूरा हों जाता है……ये सफ़र ख़त्म हो जाता है और छोड़ जाता है कई सुहानी यादॆ कुछ तस्वीरों में और कुछ आपके ज़ेहन मॆं…..जो सदा आपके साथ रहती हैं। एक ऐसा ही अनुभव मेरा रहा दिल्ली के शिल्प संग्रहालय का….. दिल्ली के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक, इस संग्रहालय को औपचारिक तौर पर राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं हथकरघा संग्रहालय कहा जाता है। यह एक जीवंत संग्रहालय है जहां आपको देश के विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है। विश्व भर के लाखों पर्यटक यहाँ भारत की शिल्प एवं कलाओं को देखने यहां आते हैं। इसी संग्रहालय में मेरी मुलाकत एक नवविवाहित जोड़े से हुई, इतेफ़ाक की बात यह थी की मैं उस जोडे को पहचानता भी नहीं था लेकिन जब मैंने उनसे बात करने की कोशिश की तो मालूम पड़ा की दोनों ना बोल सकते हैं और ना ही सुन सकते हैं । इस नवविवाहित जोड़े को देख कर पहले तो थोड़ा बुरा सा लगा लेकिन, दूसरी तरफ एक दूसरे को सांकेतिक भाषा यानी (sign language) के माध्यम से हर बात को समझाने के प्रयास को देखकर मन को अच्छा सा लगा…. ना ही कोई लड़ाई झगड़ा ना ही कोई तू – तू मैं – मैं…..और ना ही ऊंची आवाज़ें…..बेश़क दोंनो एक दूसरे को सुन नहीं पाते हो लेकिन अपनी भावनाओं को बख़ुबी समझ रहे थे, रूठना मनाना भी उसी सांकेतिक भाषा में……ख़ैर जरुरी नहीं की हर चीज़ के लिए शब्दों का इस्तेमाल किया जाए……वो दोनों बस बिताय हुए इन सुनहरे पलों को तस्वारों के रुप में सजा कर भविष्य के लिए रखते जा रहे थे। बिना कहे दोंनो एक दूसरे की बातों को समझ रहे थे, चेहरे की मुस्कुराहट से, एक दूसरे पर भरोसा और आपस का प्यार साफ़ झलक रहा था….. जीवन में यह आप पर निर्भर करता है कि आप परिस्थितियों को कैसे देखते हैं, आपका नज़रीया सकरात्मक है या नकारात्मक ये आपको तय करना है….. ऐसे दिव्यांग मित्रों की मदद करें और उनका हौसला बनें ज़िदगी में हमेशा ख़ुश रहॆं, हंसते रहॆं…मुस्कुराते रहें…. और हां शिल्प संग्रहालय घूमने जरुर जाएं…. शुक्रिया… उदित…..

ये दिल्ली है मेरी जान….

ये दिल्ली है मेरी जान….

देश की राजधानी…. दिल्ली, एक ऐसा शहर जो ख़ासा ट्रेंडी और भागादौड़ी के लिए मश्हूर माना जाता है। खाने पीने का ट्रेंड, ओढने-पहने का ट्रेंड, और ना जाने कितने ट्रेंड इस शहर की पहचान है…..उन्ही में से एक ख़ासा मशहूर है दिल्ली का VIP ट्रेंड…… खाली सड़क पर तेज़ी से दौड़ती सफ़ेद और काली गाड़ियां, लाल बतियों का शोर, तक़रीबन हर गाड़ी से निकले हुए वो ज़ेड वालों के हाँथ और सड़को पर लगा लंबा लंबा जाम…..
पूरे दिन थक हार कर शाम के वक़्त हर किसी को घर पहुँचने की जल्दी होती है लेकिन इस VIP ट्रेंड के कारण 1 से 1:30 घंटा आपका समय उस ट्रैफिक जाम में ही निकल जाता है, जो की उन संत्री मंत्री के लिए शायद कोई एहमियत नहीं रखता है और अगर रखता भी है तो क्या फ़र्क पड़ता है।
दिल्ली के फिरोज़शाह रोड, से lemeriden Hotel की तरफ़ जाने वाले रास्ते को करीब करीब 45 मिनट के लिए अचानक से रोक दिया गया, पहले तो लगा की शायद कोई सड़क दुर्घटना हुई है, इसलिए वाहनों को इस तरह से रोका गया है लेकिन नहीं ये VIP ट्रेंड की हवा थी। जो किसी VIP के आने के पहले आती है।
कुछ ही समय में दिल्ली पुलिस की PCR और नीली बत्ती वाली एम्बेदर की गाड़ियों से बरेगाटिंग कर दी गयी। और धीरे धीरे लंबा जाम लगता गया….
इस VIP ट्रेंड की मार में एक नीली बत्ती भी जाम में फंसी हुई थी हो सकता है कोई आपात स्थिति में अस्पताल जा रहा होगा या फिर किसी को आपात स्थिति में बचाने के लिए जा रही होगी….लेकिन सिर्फ इस मश्हूर ट्रेंड के कारण वही की वही खड़ी थी। हर किसी की नज़र उस पर थी पर सब शायद मज़बूर थे। बसों में सफ़र करने वाला आम आदमी भी इस ट्रेंड की मार झेल रहा था और पसीना पोंछते हुए VIP के निकलने का इंतज़ार कर रहा था।
लोग अब अपनी कार और बसों से बाहर आने लगे और पूँछने की कोशिश की….
सन्तोषजनक जवाब ना मिलता देख अब यही आम आदमी वोट से लेकर रोड़ पर था। आख़िरकार जनता है साहब….हालात बिगड़ते देख पुलिस के आला अधिकारीयों को Emergency सन्देश भेजने पड़े और जवाब आने के बाद कुछ मिनटों के लिए रास्ता खोलना पड़ा।
किसी भी व्यक्ति विशेष को गलत ना ठहराते हुए बस यही निवेदन है की अगर हमारे मंत्रीगणों को इस ट्रेंड के साथ रहना ही है तो कृपया अलग से VIP कॉरिडोए बनावाएं और जितना चाहें उतना घूमे फिरें, लेकिन आम जनता को ऐसे परेशान ना करें और ना ही अपने हिस्से की गलियां दूसरों को खिलाएं।
यही जनता आपको VIP बनाती है और फिर बाद में गरियाती है।
इस ट्रेंड को चलायें या बंद करें आप के हाँथ में है, पर हाँ ना किसी को सताएं और ना ही किसी के जीवन के ख़त्म होने का कारण बने…..

BY:VINAY RAWAT