बेबस जिंदगी….

बेबस जिंदगी….

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ठण्ड बहुत ज़्यादा है और आज तो दफ्तर से लौटते वक़्त जुत्तों के भीतर से घुसती ये हवा, सच में ठण्ड बहुत ज़्यादा है, क्या करें दिल्ली की सर्दी है साहब। वही रोज़ की तरह घर जाते वक़्त बस में फिर एक किरदार से मुलाकात हुई, या यू कहिये की बेबसी का एक और राह चलता उदहारण।
जीवन सबको मिलता है लगभग सभी को इसकी कद्र भी होती है, पर हालात और मजबूरियें आप से सब करवा लेती हैं।
रोज़मर्रा की तरह आज भी बस में एक व्यक्ति अपने किसी सामान को बेचने के नेक इरादे से चढ़ा, सामान हाँथ ही में था…. एटीएम, मेट्रो कार्ड और अन्य कार्डो को रखने का छोटा सा पर्स…..चढ़ते ही बेहतर तरिके से पर्स की ख़ासियत बतायी वो भी अच्छे शब्दों में….
इस ठिठुरन पैदा कर देने वाली ठण्ड में बदन पर सिर्फ एक कमीज जिस पर किसी चिंगारी का निशां, अध् फटी हुई जीन्स और हवाई चपलएं। सभी से उस 10 रुपए की कीमत वाले पर्स को खरीदने की दरख़्वास्त करता रहा जिसे सौदा पते का लगा उसने ले लिया और जिसे नहीं लगा उसने ये कह कर टाल दिया की….साहब एटीएम भी तो होना चाहिए रखने के लिए तो किसी ने धुत्कारते हुए महँगा दे रहा है की दलील दे डाली…..
उंगलियो के बीच दस -दस के नोट फसाये जिंदगी बढ़ती जा रही थी, रोड पर तेज़ी से चलती बस एक एक कर स्टैंडों को पीछे छोड़ती जा रही थी और वो व्यक्ति अपना बचा हुआ सामान बेच कर घर को जाने वाला था, चाहे जैसे ही सही वो सज्जन अपने परिवार को मेहनत और ईमानदारी की दो रोटी ही तो देने की कोशिश कर रहा था। करनी भी चाहिए क्योंकि आपको ही अपने बारे में सोचना होगा वो भी हर मामले में क्योंकि कोई और नहीं आएगा आपकी ख़बर और बिसरी सुध लेने।
साहब यही जीवन है वक़्त का पता नहीं कब किस ओर करवट ले ले, अच्छे या बुरे दिन कब आते हैं किसी को पता नहीं है, जीवन में चाहे जैसे रहे, कैसी भी स्थिति में हो हमेशा अपने व्यवहार और विचार से सरल रहे, मधुर रहे… जीवन में ऊँचा उठते समय लोगों से सद्व्यवहार रखें, क्योंकि यदि कभी आपको नीचे आना पड़ा तो सामना इन्हीं लोगों से होगा। और जब आपकी मुलाकत कभी भविष्य में इन्ही लोगों से होती है तो आपके सदाचार, आचरण और व्यवहार से ही आपको याद किया जाता है।
सदा दूसरों से सीखते रहें, सकरात्मक रहें और ख़ुश रहें क्योंकि अच्छे या बुरे दिनों का पता नहीं……..

शुक्रिया

img-20161125-wa0032उदित…

सफ़र-ए-ज़िन्दगी….

सुबह के बाद शाम है…. दिन के बाद रात है … आशा के बाद निराशा है… निराशा हाथ लगती है तो लगने दो … पर आशा की किरण को ना ढलने दो…. रफ़्तार बहुत तेज़ है वक़्त की … तेज़ ना…

Source: सफ़र-ए-ज़िन्दगी….

सफ़र-ए-ज़िन्दगी….

सुबह के बाद शाम है….
दिन के बाद रात है …
आशा के बाद निराशा है…
निराशा हाथ लगती है तो लगने दो …
पर आशा की किरण को ना ढलने दो….
रफ़्तार बहुत तेज़ है वक़्त की …

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तेज़ ना सही पर धीरे धीरे ही सही खुद को आगे बढ़ने दो….
रुकोगे सफ़र में अगर तो देर हो जाएगी, नहीं बढ़ोगे आगे तो कश्ती मज़धार में रह जाएगी….
लौट के वापस नहीं आता कोई जीवन में…
वक़्त भी गुज़र जाने के बाद ही मुस्कुराता है….
मंज़िल की सीढ़ीएँ ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की तरफ जाती है….SAMSUNG CSC

ये आपकी सोच को बख़ूबी दर्शाती है…

धीरे धीरे चढोगे तो मुकाम पा जाओगे…
तेज़ भागोगे तो जल्दी थक जाओगे…

लक्ष्य कुछ भी जीवन में पाने की ठान लो..
लक्ष्य प्रण से बड़ा नहीं….
हरा वही जो लड़ा नहीं…..
छाले पड़ेंगे पैरों में पर तुम रुकना नहीं….
चाहे जो कहे कहने वाले पर तुम किसी के आगे झुकना नहीं…

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आज नहीं तो कल तुम भी अपनी मंज़िल पर पहुँच जाओगे….
अपने लक्षय को आज नहीं तो कल जरूर पा जाओगे….
बस मरने ना देना अपने सपनों को यूंही….
पूरा कर ना लो इन्हें जबतक ख़ुद को ठाहरने ना देना यूंही..windows-beach-wallpapers-india-wallpaper-panaji-sunset-colors

निराशा हाथ लगती है तो लगने दो …
पर आशा की किरण को ना ढलने दो…
इतने जल्दी ख़ुद को तुम ना थकने दो
बस थकने ना दो…
बस थकने ना दो….

विनय रावत                                                                  (उदित)

चित्र सौजन्य- गूगल

सियासत….

सियासत….

सियासत रंगीन तो है
मगर फूट डाल देती है
रिश्तों में टूट डाल देती है
सियासत चीज़ ही ऐसी है सब में फूट डाल देती हैं….

सत्ता का सुरूर है
पर संबंधों में कम नूर है
सफ़ेद चादर सी तो है
लेकिन काफ़ी मैली है

सच तो ये है की सियासत टूट डाल देती है
रिश्तों में फूट डाल देती है।

लोग इसे कीचड़ तो कहते है
मगर कमाल भी इसी में ढूंढते है
थोड़ी नहीं बहुत गन्दी है
सियासत सच में नंगी है
और सच है इसमें फूट ही फूट होती है।

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सच तो ये है की सियासत टूट डाल देती है
रिश्तों में फूट डाल देती है।

सगे संबंध पीछे टूट जाते है
सियासत में अच्छे अच्छे पीछे छूट जाते है
ये हर बार का मेला है, लगती यहां बोली है
किसी को लाखों संग है तो कोई बिलकुल अकेला,

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सबका अपना अंदाज़ हैं, कोई झूठा तो किसी का झूठ का पुलिन्दा है
कोई जाति पर, कोई धर्म पर मांगता है
या कोई वोट के लिए आरक्षण का राग अलापता है
कोई वादों और नारों में उलझता है
कोई हमारे दर्द को हमारी ताक़त बताता है

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सच तो ये है की सियासत टूट डाल देती है
रिश्तों में फूट डाल देती है।

खून पानी सा बहता है
पैसा हवा में उड़ता है
लोग भी योजनाओं की नाव पर सवार रहते हैं
झूठ ही सही पर झूठ को सबसे बड़ा बताते है
ये विकास के नाम पे सिर्फ भाषण सुनाते है
काम चुनाव में जीत के बाद भूल सा जाते हैं

 
आख़िर कब ये सुधरेगा
बेटा बाप से बाप बेटे से कब तक उलझेगा
रिश्तों की डोर आख़िर कब तक टूटेगी कब कुछ बेहतर होगा
कब हम चुनाव और वोट की क़ीमत समझेगेंreal-story-behind-the-samajwadi-family-of-indian-politics

लेकिन कुछ भी हो ,
सच तो यही है की सियासत टूट दाल देती है
रिश्तों में फूट डाल देती है।
रिश्तों में फूट डाल देती है।

उदित….

चित्र सौजन्य: गूगल बाबा

बस जीवंत ये विचार है….

जीवंत ये विचार हैं
रंगीन सी शाखाओं पे पत्तियों का भार है
उड़ती हुई हवा में धुंध का अंबार है
सख़्त सी सतह पर ये कोमल मृदा है
जीवंत ये विचार है…il_fullxfull-736786575_kxeu

वही राहें वही कतार हैं
सूखी हुई डालों पे पंछी अपार है
मोह का संसार है
कोई छोटा कोई बड़ा हर बार है
रिश्तों की डोर है, पर कहि कहि गांठे हैं
सकंट तो अपार लेकिन
जीवंत ये विचार हैं…img_20150620_170403482

संघर्ष का अंबार है
कभी हार तो कभी हाहाकर है
घंघोरे अंधियारे में, शशि का उपकार है
फ़िक्र कल की है, पर आशाएं अपार है
जीवंत ये विचार है….the-moon

उड़ते नन्हे पंछी अपने पंख पसार
इस अंतहीन आसमां में, जो अनन्तता अपार है
जीते ज़िन्दगी को हर बार हैं….

ना रखो फ़िक्र कल की
क्या हो क्या ना हो उसपार
क्या हो क्या नहीं किसी को इत्तला नहीं
बस जीते जा हर बार तू
सीख ख़ुद से लेते चल, कर्म को सर्वश्रेष्ठ कर
बोझ ना समझ इन्हें, कंधो की ज़िमेदारियां इन्हें समझ
बस लक्ष्य को आँखों में बसा,
नित पथ पे आगे बढ़, परिणाम बेहतर कर
बस जीवंत ये विचार है
जीवंत ये विचार है।

उदित…..