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दो दोस्त…

सुबह सवेरे जब 6बजे घड़ी का अलार्म बजता है तब लगता है उठाकर फेंक दूं इसे और बंद कर दूं हमेशा के लिए…लेकिन कभी ऐसा कर नहीं पाता हूं और मज़बूरन ही सही 6-6.30 की नींद लेकर छोड़ देता हूं बिस्तर आजकल…टहलने के बहाने छोटे से शहर के कोने में तरीक़े से अंग्रेज़ो के ज़माने में बने कैंट के बाहर-बाहर की सड़कों पर निकल जाता हूं…अकेले घूमना फिरना बड़ा अजीब सा लगता है…लगता है जैसे मन में पिछले दिनों का कुछ बोझ लिए अंदर ही अंदर कुछ सोचते हुए पेड़ो को, पंछियों को, दूर तक फैले आसमान को देखना सिर्फ़ मजबूरी हो…बड़े शहरों में ये मज़बूरी और मज़बूत व बड़ी हो जाती है…लेकिन तभी आपके अकेलेपन, अधूरेपन और ख़ामोशी से बीत रही ज़िंदगी में कुछ लोग आते हैं जो इसे ख़त्म कर देते हैं और भर देते हैं रंग इन बेजान और अधूरे चित्रों में…आप सोच रहे होंगे कि कौन हैं वो लोग…आज मेरे दो दोस्त बने हैं वो एक दूसरे के बेस्ट फ्रेंड हैं और अब मैं उनका दोस्त हूं…दोनों बहुत ही सरल, बिना किसी छल या कपट का कोई मुखौटा लगाए बिल्कुल बहते नीर से हैं जैसे बहते पानी में सबकुछ साफ़ देखा जा सकता है ठीक वैसे ही उनके अंदर सबकुछ साफ नज़र आता है…मेरे ये दो मित्र  शहर के नामी गिरामी स्कूल में सेकंड क्लास में पढ़ते हैं…’यश’ पलासिया(बंगाल में कहीं) का रहने वाला है और उसके पिता फौज़ में हैं…वो अपनी मम्मी और भाई के साथ यहां रहता है…यश को लगता है कि बहुत जल्द ये पृथ्वी खत्म हो जाएगी क्योंकि उसने यूट्यूब पर एक वीडियो देखा था जिसमें ऐसा बताया गया है…इसलिए वो कहता है हमें मौज-मस्ती करते रहना चाहिए…उसने बताया कि वो दीवाली पर अपने गांव जाएगा लेकिन उसे गांव जाना पसंद नहीं है क्योंकि वहां के बच्चे उसे चिढ़ाते हैं और उसकी शुद्ध बुन्देलखण्डी व हिंदी भाषा का मज़ाक उड़ाते हैं…यश नाराज़ होते हुए अपने दोस्त शिवमं से कहता है कि वो कभी अपने बचपन की फ़ोटो उसे नहीं दिखाएगा…मैंने पूंछा ऐसा क्यों…तो शिवमं ने खिल-खिलाते हुए कहा कि उसमें ये नंगा बैठा है न इसलिए…चलिए शिवमं के बारे में भी आपको बताते चलें शिवमं लखनऊ का रहने वाला है और उसके पापा नल फिटिंग का काम करते हैं…शिवमं बहुत चंचल मन वाला है उसके मस्तिष्क में हर चीज़ को लेकर सवाल उड़ते रहते हैं…ये ऐसा हुआ तो ऐसा कैसे…ऐसा क्यों हुआ…शिवमं अपने आप को बहुत ही ज़िमेदार बेटा,भाई और दोस्त मानता है…उसने अपनी दीदी के जन्मदिन पर उनके लिए गाउन आर्डर किया है सरप्रिज़ देने के लिए… लेकिन यश का मनना है कि शिवमं एक चीज़ में सबसे ज्यादा लापरवाह है वो है खाना…उसे खाना बिल्कुल पसंद नहीं है वो सिर्फ़ चटोनिया मतलब नमकीन, बिस्किट और बर्गर पिज़ा खाता है…इसीलिए शायद वो अपने दोस्त से काफ़ी कमज़ोर भी है…पहले दिन जब मेरी इनसे मुलाकात हुई तो ये दोनों कुत्तों द्वारा ठररते नीलगाय से बचते बचाते भाग रहे थे…आज उन्होंने बताया कि नीलगाय बिल्कुल गधे जैसी लगती है लेकिन ऊंची छलांगें लगाने में माहिर होती है…ये दोनों पक्के दोस्त एक दूसरे की पोल खोलने में भी माहिर हैं…यश बताता है कि शिवमं फ्री फायर नामक ऑनलाइन गेम खेलता है और मैंने इसलिए खेलना बंद कर दिया…क्योंकि एक लड़के ने आने मां के खाते से 40 हज़ार रुपये उड़ा दिए थे और मर गया था…शिवमं यश की बात को खारिज करते हुए कहता है 40 हज़ार उड़ाए नहीं थे…टॉप अप रिचार्ज कर लिया था और हार गया था…तभी शिवमं के मन में एक सवाल खूद पड़ा अंकल…भैया… सॉरी जो भी है…भैया मोज़ चलाते हो आप…मैंने कहा नहीं… आप चलाते हो, हां कभी कभी…शिवमं बड़े होकर बैंक मैनेजर बनना चाहता है और यश अपने पापा की तरह फौज़ में बड़ा अफ़सर बनना चाहता है…आज की इस मुलाकात में मैंने ख़ुद को बहुत पीछे पाया कई बातें नहीं लिखी जो आपको साफ़ समझ आ रही होंगी जैसे कि हम सेकंड क्लास में कैसे थे क्या हमें इतना सब पता था, क्या हमें कभी हमने सोचा कि कौन कैसे क्या और क्यों करता है…खैर… इनके बाल मन में न जाने कितने ही और विचार तैर रहे थे… इतनी जिज्ञासा वाकई बचपन में ही रहती है फिर तो लाज, शर्म, डर सब मन में घर कर लेता है…इनकी बातों में पता ही नहीं चला कि कब 8 बज गए…घर लौटते हुए दोंनो ने अपने घर दिखाए और इशारे से मेरा घर पहचानते हुए…टाटा बोलते हुए भैया कल मिलेंगे कहते हुए अगले पड़ाव की ओर चले गए…दो सच्चे दोस्त

उदित…