एक साँवली सी लड़की….

एक साँवली सी लड़की,जो परिपूर्ण है खुद में,
जो कम नहीं है किसी से, उसे गुमां भी है अपने उस रंग पे, जो बनाता है उसे सबसे ख़ास सबसे अलग, और इसीलिए हर कोई जचता भी नहीं उस सा हर रंग के साथ…पर हाँ बड़ा इतराती है, नज़रें भी ख़ूब लड़ाती है, इक साँवली सी लड़की दिल को बहुत भाती है…श्रृंगार मानो बिल्कुल सादा, कजरा, बिंदिया और लाली, सबको मजबूर कर देती है ठकर कर एक नज़र उसेदेखने के लिए…
उससे रहती है ललक मिलने की हर शाम मुझे,
हाँ वही है ये जो करती है राज लाखों दिलों पर आज भी, वो मुस्कुराती है खुलकर अपने अरमानों के साथ, अपने सपनों के साथ, उसमें दिखते हैं मोहब्बत के कई रंग भीतर तक,
नहीं है उसे कोई फ़िक्र कल की और न ही किसी और की भी – कौन क्या कहता है क्या सोचता है उसके रंग रोगन, कद काठी, स्वरूप के बारे में, वो तो लुटाए जा रही है मोहब्बत चारों तरफ़…किसी की प्रेमिका बनकर, किसी की दोस्त, किसी की संगिनी…..सुंदरता देखो उसकी पहने हुए है सीधे हाथ की आख़िरी उंगली में वही नंग जिसे पन्ना कहते हैं, रंग इबादत का, इश्क़ का, ख़ुलूस का…
मांथे पर नहीं है शिकन कोई जिसके, दोनों आंखो में एक अलग सा तेज़ है, हल्की सी टेढ़ी नाक में पहनी नथ से बढ़ती खूबसूरती है… छुपा रखी है मुस्कान दोनों होंठो के बीच में इसी साँवली लड़की ने और घेर रखा है घनी जुल्फ़ों ने लंबी सी गर्दन को तीन तरफ से किसी जंगल सा….मगर वो बात अलग है दबा रखें है कई ज़ख्म इसने भी अपनी इस हँसी के पीछे, सहे हैं इसने भी कई ताने अपने रंग को लेकर, मिला है इंकार इसे कईयों से उम्रभर…भले रंग की वजहों से बस….बस पी जाती है बहुत कुछ कड़वाहट भरा जो इसकी ज़िंदगी को और बुरा बना देता अगर नहीं बढ़ती आगे सबकुछ भूल कर….वैसे कई दर्द हैं दिलों के कोनो में जो कुछ वक्त तक ताज़ा रहे अब बस पड़े हैं किसी कोनों में…..और अब खुलकर मुस्कराती है ये साँवली सी लड़की और दूसरों को भी रखती है ख़ुश अपने अंदाज से, अपने मिज़ाज से…गैरों के लिए होगा भेद कोई रंग का, अपनों में सबसे प्यारी है, ये साँवली सी लड़की….ख़ैर एक साँवली सी लड़की जो दिल को खूब भाती है, लो देखो वो खुद पर कितना इतराती है, नज़रें मिलती है नज़रें चुराती है बस एक साँवली सी लड़की दिल में उतर सी जाती है…

                                    उदित…

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